कालभैरवाष्टकम् Kalabhairava Ashtakam

शुक्रवार, 22 नोव्हेंबर 2024 (12:33 IST)
कालभैरव अष्टकम् 
देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् 
नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥ 
 
भानुकोटि भास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठम् ईप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालम् अंबुजाक्षम् अक्षशूलम् अक्षरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥ 
 
शूलटङ्क पाशदण्ड पाणिमादि कारणं
श्यामकायम् आदिदेवम् अक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥ 
 
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन् मनोज्ञहेमकिङ्किणी लसत्कटिं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥ 
 
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाश मोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाश शोभिताङ्गमण्डलं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥ 
 
रत्नपादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकं
नित्यम् अद्वितीयम् इष्टदैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥ 
 
अट्टहास भिन्नपद्मजाण्डकोश सन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपाप जालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपाल मालिकन्धरं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥ 
 
भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोक पुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥ 
 
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥ 
 
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

वेबदुनिया वर वाचा

संबंधित माहिती