तेथें अपमान पावसी। यज्ञकुंडींत गुप्त होसी। जय. ।।1।।
जय देवी हरितालिके। सखी पार्वती अंबिके। आरती ओवाळीतें।
केली बहु उपोषणें। शंभु भ्रताराकारणें। ।।जय.।।3।।
जय देवी हरितालिके। सखी पार्वती अंबिके। आरती ओवाळीतें।
मातें दाखवीं चरण। चुकवावें जन्म मरण। जय. देवी।।5।।
जय देवी हरितालिके। सखी पार्वती अंबिके। आरती ओवाळीतें।