विश्वकर्मा चालीसा Vishwakarma Chalisa
 
	
		
			 
										    		बुधवार,  17 सप्टेंबर 2025 (06:59 IST)
	    		     
	 
 
				
											॥ दोहा ॥
	श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं,
	चरणकमल धरिध्यान ।
	श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण,
	दीजै दया निधान ॥
	 
	॥ चौपाई ॥
	जय श्री विश्वकर्म भगवाना ।
	जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
	 
	शिल्पाचार्य परम उपकारी ।
	भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
	 
	अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर ।
	शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
	 
	अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता ।
	सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥ ४ ॥
	 
	अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं ।
	कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
	 
	विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा ।
	अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥
	 
	एकानन पंचानन राजे ।
	द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
	 
	चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे ।
	वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥ ८ ॥
	 
	शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा ।
	सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
	 
	धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे ।
	नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
	 
	दसवां हस्त बरद जग हेतु ।
	अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
	 
	सूरज तेज हरण तुम कियऊ ।
	अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥ १२ ॥
	 
	चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका ।
	दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
	 
	विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं ।
	अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
	 
	इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा ।
	तुम सबकी पूरण की आशा ॥
	 
	भांति-भांति के अस्त्र रचाए ।
	सतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥ १६ ॥
	 
	अमृत घट के तुम निर्माता ।
	साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
	 
	लौह काष्ट ताम्र पाषाणा ।
	स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
	 
	विद्युत अग्नि पवन भू वारी ।
	इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
	 
	खान-पान हित भाजन नाना ।
	भवन विभिषत विविध विधाना ॥ २० ॥
	 
	विविध व्सत हित यत्रं अपारा ।
	विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
	 
	द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका ।
	विविध महा औषधि सविवेका ॥
	 
	शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला ।
	वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
	 
	तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ ।
	करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥ २४ ॥
	 
	भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका ।
	कियउ काज सब भये अशोका ॥
	 
	अद्भुत रचे यान मनहारी ।
	जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
	 
	शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही ।
	विज्ञान कह अंतर नाही ॥
	 
	बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा ।
	सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥ २८ ॥
	 
	रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा ।
	तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
	 
	मंगल-मूल भगत भय हारी ।
	शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
	 
	चारो युग परताप तुम्हारा ।
	अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
	 
	ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता ।
	वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥ ३२ ॥
	 
	मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा ।
	सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
	 
	पंच पुत्र नित जग हित धर्मा ।
	हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
	 
	प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई ।
	विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
	 
	जै जै जै भौवन विश्वकर्मा ।
	करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥ ३६ ॥
	 
	इक सौ आठ जाप कर जोई ।
	छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
	 
	पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा ।
	होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
	 
	विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे ।
	हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
	 
	मैं हूं सदा उमापति चेरा ।
	सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥ ४० ॥
	 
	॥ दोहा ॥
	करहु कृपा शंकर सरिस,
	विश्वकर्मा शिवरूप ।
	श्री शुभदा रचना सहित,
	ह्रदय बसहु सूर भूप ॥
