श्री स्वामी कृपा स्तोत्र

मंगळवार, 7 मे 2024 (11:32 IST)
| ॐ श्री सद्गुरु अक्कलकोट स्वामी समर्थ ||
|| ॐ श्री गणेशाय नम: || ॐ श्री सरस्व़त्यै नम: || ॐ श्री सर्वशक्तिमूर्तये नम: || ॐ परात्पर जगत्‌गुरु नमो | 
 
आता नमू मयुरवाहिनी | जी शब्दविश्वाची स्वामिनी | 
वंदन करुया तियेसी ||1|| 
 
जो सकल विश्वाचा आधार | निर्गुण आणि निराकार | 
तो ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वर | सद्भावें वंदू त्रैमूर्ती ||2|| 
 
त्रैमूर्तिचा महिमा अपार | गुरुचरित्री वर्णिला साचार | 
स्तुति करता अपरंपार | वेद चारी शिणले ||3|| 
 
कर्दलवनी झाले गुप्त | साक्ष ठेवून गाणग क्षेत्र | 
निर्गुण पादुका पवित्र | भक्तांसाठी ठेवियल्या ||4|| 
 
पंढरीचा पांडुरंग | ज्यासी आवडे संतसंग | 
तारिले तुक्याचे अभंग | त्यासी प्रणिपात अंतरी ||5|| 
 
करु या साष्टांग दंडवत | त्रैमूर्ती श्रीगुरुदत्त | 
अक्कलकोटी यति समर्थ | सद्भावे नमू अंतरी ||6|| 
 
आता श्री स्वामीरायांचे अख्यान | भाविकतेने करा श्रवण | 
सर्वसुखाचे निधान | लाभेल स्तविता सर्वांसी ||7|| 
 
भक्तीचा करुनी सोहळा | दाखवी अगम्य लीला | 
ऐसी ख्याती त्रैलोक्याला | मी पामर काय वर्णू ||8|| 
 
नृसिंहसरस्वती गुरुस्वामी | गुप्त जाहले कर्दलवनी | 
येतां पुनश्च धर्मा ग्लानी | अक्कलकोटी अवतरले ||9|| 
 
कर्दलवनी गुप्त जाहला | अबू पहाडी प्रगटला | 
वधूत मानवरुपे आला | अक्कलकोटी माझारी ||10|| 
 
श्री गुरुस्वामी यति पाहिला | मूर्तिमंत तेजाचा पुतळा | 
कंठी रुळती रुद्राक्षमाळा | पद्मासनी स्थित असे ||11|| 
 
शांत गंभीर दिसे रुप | हेमसंकाश तनु अनुरुप | 
नेत्रकमलांची कृपाझेप | भक्तावरी सर्वदा ||12|| 
 
भाली शोभे कस्तुरी तिलक | साजिरे दिसे नासिक | 
ओष्ठ हनुवटी सुंदर मुख | चंद्रापरी दिसतसे ||13|| 
 
समुत्कंठ पाहू चला | आजानुबाहू शिव भोळा | 
कंठा भूषवी त्रिदलमाला | नृसिंहभान गुरुस्वामी ||14|| 
 
निम्ननाभी दिठी सुंदर | धूर्जटी कौपीन कटीवर | 
दत्त नरहरी यतिवर | धीपुरी प्रगटलासे ||15|| 
 
अखिल विश्वी विश्वंभरु | भक्तजन सुरतरू | 
या हो सकल पादपद्म धरु | देहबुध्दी करु दुर ||16|| 
 
मम हृदयीं ठसो मूर्ति | शंख चक्रांकित गदा हाती | 
कामधेनुसह चतुर्वेद मूर्ती | सदैव राहो अंतरी ||17|| 
 
अबूगिरीवरुनी हृद्कमली | वेगे येई गुरुमाऊली | 
रत्नखचित सिंहासनी बैसली | भक्तकाज करावया ||18|| 
 
आतां करितों तुझी पूजा | रमावरा अधोक्षजा | 
सप्रेमें क्षाळितो पदरजा | अर्ध्य देई स्वकरी ||19|| 
 
मधुर सुवासिक शीतळ | गंगोदक जळनिर्मळ | 
पंचामृत स्नान सचैल | निजहस्ते घालितो ||20|| 
 
स्नान करुनी, करा आचमन | भरजरी पितांबर नेसून | 
शालजोडी पांघरुन | सुखे घेई स्वामीया ||21|| 
 
चंद्रोपम उपवीत घालुनी | रत्नाभरणे, कौस्तुभमणी | 
कस्तुरी टिळा लेवुनी | चंदन उटी लावावी ||22|| 
 
निराकार, निर्गुण गोपाळा | कंठा भूषवी तुलसीमाळा | 
बिल्व-शमी दुर्वांकुराला | सहस्त्रनामें अर्पितो ||23|| 
 
अष्टगंध, बुक्का सुगंध | सौरभे होती दिशा धुंद | 
अर्पितो दीप स्वानंद | मानुनी घेई गुरुराया ||24|| 
 
रत्नखचित चौरंगावरी | सुवर्णताटी पक्वाने सारी | 
दहि-दूध लोणचे कोशिंबिरी | पंचखाद्य नैवेद्य सेवा जी ||25|| 
 
कर्पूरोदके धुवोनि हस्त | घालितो करी पंचामृत | 
प्राणापान, व्यान, उदान समस्त | तूचि अससी स्वामिया ||26|| 
 
गुरुमूर्ती तू षड्रस | मीहि त्यांस ऐक्य सहज | 
दिव्य सच्चित रुप निज | वेदपूर्ण भरले असे ||27|| 
 
वदनसुवासा तांबूल | त्रयोदशगुणी निर्मळ | 
मुखशुध्दिस नारळ | घ्यावा आता गुरुराया ||28|| 
 
भक्तवत्सला स्वामिराजा | अंगिकारावी माझी पूजा | 
नमस्कारोनी अधोक्षजा | श्रीमुख बघतो न्याहाळुनी ||29|| 
 
तव आरती ओवाळिता | नासती अनंत ब्रम्हहत्या |
 वेद बोलतो वाणी सत्या | त्रिवार ऐसे सत्यचि ||30|| 
 
सनकादिक मुनी सुरवर | करिता स्वामींचा जयकार | 
मंत्रपुष्पांचा संभार | जडजीवासी उध्दरी ||31|| 
 
वेदघोष अति सुस्वर | प्रदक्षिणा घाली वारंवार | 
प्रेमे साष्टांग नमस्कार | अनंतासी दंडवत ||32|| 
 
अनंतकोटी ब्रम्हांडनायका | अनादि स्वरुपा गुरुराया | 
लागलो आता तव पाया | भक्तकृपाळा उध्दरी ||33|| 
 
छत्रचामरे वारीन | गंधर्वगान समर्पिन | 
सुस्वर वाद्ये वाजवून | तुष्ट करितो तुजलागी ||34|| 
 
सुदिव्य, सुखशय्या मृदुल | ठेवी सुखासनी पदकमल | 
चरण, अहर्निश चुरीन | सेवा मानून घ्यावी जी ||35|| 
 
सत्‌शिष्य भजनी रंगती | भजनानंदी विसावती | 
संतसंगी जडो प्रीती | हेचि मागणे स्वामीया ||36|| 
 
शेष, व्यास, सरस्वती | गुणवर्णन करीती महामती | 
भक्तस्तवन ऐकुनी श्रीपती | प्रसन्न व्हावे सत्वरी ||37|| 
 
विश्वंभर तू सौख्यराशी | भक्तकौतुक पुरविशी | 
योगक्षेम चालविसी | ऐसी ख्याती त्रिभुवनी ||38|| 
 
निजनिर्माल्य प्रसाद देसी | उच्छिष्ट आंस सर्वांसी | 
पूर्वपुण्ये येती फळासी | सेवा गुज ऐसे हे ||39|| 
 
सृष्टि-उत्पत्ति-स्थिती-संहारा | अवतार तुझाचि गुरुवरा | 
ब्रम्हा-विष्णु-महेश्वरा | स्वामीरुपी शोभसी ||40|| 
 
रवि-चंद्रासी तेजाळले | ते तेजही तुजकडोनी आले | 
निज-भक्त कार्य सगळे | तव प्रसादे लाभते ||41|| 
 
इह परत्र सौख्य देसी | कल्पतरुसम शोभसी | 
जैसा भाव धरावा मानसी | तैसा त्यासी अनुभव ||42|| 
 
शिव-विष्णु-शक्ति-गणपति | स्वामीरुपे सारे शोभती | 
निगमागमही स्तविती | सत्यज्ञानानंद तू ||43|| 
 
त्रिविधताप हे निवारिसी | दीनजना उध्दरिसी | 
क्षमा करावी दासासी | मागणे हेचि जीवनी ||44|| 
 
जीवात्मज्योति उजळुनी | तव प्रकाशे प्रकाशुनी | 
पाहते नित्यचि स्तवनी | स्वामीराजा ||45|| 
 
ऐशी अतर्क्य स्वामीलीला | वणिर्ता वेदही शिणला | 
तेथे मज पामराला | कैसी शक्ती ||46|| 
 
काया वाचा मानसी | इंद्रियाधीकृत कर्मासी | 
अर्पितो परात्परा तुजसी | सारी सेवा ||47|| 
 
रामकृष्ण तू सर्वसाक्षी | पृथ्वीवर अवतार घेसी | 
हरावया भूभारासी | पंढरी वास केला ||48|| 
 
पंढरीस श्रीविठ्ठल | गिरीवर विष्णु सोज्वळ | 
करवीरी लक्ष्मी प्रेमळ | विश्वेश्वर काशीवासी ||49|| 
 
कलियुगी नृसिंह-सरस्वती | अत्रिनंदन गाणग क्षेत्री | 
गुरु माणिक प्रभूही तूचि | अक्कलकोटी गुरुराया ||50|| 
 
जे भक्त तुजला भजती | अहर्निश राहे त्यांचे पाठी | 
भक्त संरक्षणासाठी | अक्कलकोटी वास केला ||51|| 
 
स्तविता ही स्वामी माऊली | पापे अनंत जन्माची जळाली | 
वाढविसी प्रेमसाऊली | वात्सल्य नांदे सर्वदा ||52|| 
 
असत्‌वृत्ति जावो विलया | सद्‌वृत्ती पावो जया | 
सकलजनासी देवराया | सौख्य लाभो जगी या ||53|| 
 
गोवर्धन गिरी धरिसी | अग्निही तू प्राशिसी | 
पार्थगुरु सारथी होसी | महिभार हरावया ||54|| 
 
अविनाशी अवतार दत्त | जगती आहे विख्यात | 
अघटित लीला दावित | गाणगापुरी बैसला ||55|| 
 
गुरुतत्व गूढ सार | जाणताती भक्त थोर | 
तोचि प्रज्ञापुरी यतिवर | भक्तकाजी रंगला ||56|| 
 
हे स्तोत्र करिता पठण | त्यासी न बाधे चिंता दारुण | 
भवभय दु:खाचे निरसन | स्वामीकृपे होईल ||57|| 
 
अनन्यभावे करा स्मरण | साक्षात्कारे घ्यावे दर्शन | 
हेचि सद्गुरु वचन | असत्य न होई सर्वथा ||58|| 
 
ठेवुनिया श्रध्दा भाव | मनी आळवावा गुरुदेव | 
भक्तासाठी घेई धाव | रक्षणासी सिध्द सदा ||59|| 
 
वटवृक्षतळी जाण | श्रीसद्गुरु प्रतिमा ठेवून | 
यथासांग करावे पूजन | षोडशोपचारे आदरे ||60|| 
 
मग करावे स्तोत्र पठण | नित्यश: एक आवर्तन | 
अखंड करिता तीन मास पूर्ण | साक्षात् सद्गुरु भेटेल ||61|| 
 
श्री स्वामी समर्थ नाम | अनंत कोटींचा कल्पद्रुम | 
सकल संतांचा विश्राम | नामस्मरणीं नांदतो ||62|| 
 
स्वामीकृपा होता क्षणी | मुक्याते फुटेल वाणी | 
पंगु जाईल उल्लंघुनी | उत्तुंग गिरीही लीलया ||63|| 
 
ऐसा महिमा अगाध | एकमुखी वर्णिती वेद | 
श्री स्वामी स्तोत्र केले सिध्द | आला धावून झडकरी ||64|| 
 
स्वामी प्रेमळ माउली | जैसे वत्साते गाऊली | 
तुझी स्तुति स्त्रोते गायिली | तव प्रेमळ कृपेने ||65|| 
 
तूचि श्री व्यंकटेश | तुचि महारुद्र महेश | 
अनंतकोटी जगदीश | श्री स्वामी समर्था सर्व तूचि ||66|| 
 
उत्पति, स्थिती आणि लय | तूचि सकलांचा आशय | 
गुरूदेवा तुचि मम आश्रय | उपासका सांभाळी ||67|| 
 
तव करितां नामस्मरण | लाभे चित्ता समाधान | 
तव चरणाशी वंदन | देवाधिदेवा समर्था ||68|| 
 
जे नर करतील आवर्तन | मनकामना त्यांची होईल पूर्ण | 
सद्भक्तिचे अधिष्ठान | नित्य ठेवूनी अंतरी ||69|| 
 
हा ग्रंथ ज्याचे घरी | तेथे अन्नपूर्णा वास करी | 
सुख संपत्ति संसारी | लाभेल भाविकां निश्चिती ||70|| 
 
करितां ग्रंथाचे पठण | दुःख दारिद्रय जाईल पळून | 
भक्त सेवेसाठी येईल धावून | दयावंत स्वामीराज ||71|| 
 
येथे ठेवूनिया विश्वास | करावे ग्रंथ पारायणास | 
दृष्टांत देवोनि त्वरेस | सांभाळीन तयालागी ||72|| 
 
हे सद्गुरूंचे सत्यवचन | श्रोते ऐका ध्यान देऊन | 
पुरवील मोक्षसाधन | एकचि माझा स्वामीराज ||73|| 
 
विश्वामित्र गोत्र कुलोत्पन्न | देशपांडे उपनामाभिधान | 
नाम माझे असे वामन | सद्गुरुचरणी लीन सदा ||74|| 
 
प्रतिभानुज हे संबोधन | घेतले श्रीगुरूने लिहवून | 
झाली सेवा सफल पूर्ण | पूर्व सुकृतानुसार ||75|| 
 
स्तुतिस्तोत्राचा गुंफिला हार | भक्तिमंजिरी त्यावर | 
घातली वैजयंती सुंदर | कंठी श्रीगुरुरायाचे ||76|| 
 
श्रीस्वामीराज स्तोत्र ग्रंथ | जाहला असे समाप्त | 
मज पामरे वदविले गुरुनाथे | त्यांचे चरणी दंडवत ||77|| 
 
श्री स्वामी समर्थ दत्त | मंत्र हा मनी घोषित | 
झाले चित्त अवघे तृप्त | पुनश्च चरणी दंडवत ||78|| 
 
देह अवघे अक्कलकोट | आत्मस्वरुपी श्री स्वामीसमर्थ | 
त्यांचे ठायी दंडवत | वारंवार घालीतसे ||79|| 
 
इति श्रीस्वामीराज सगुण | भक्तांचे वैभव पूर्ण | 
प्रतिभानुज करीतसे वर्णन | साष्टांग प्रणिपात करोनी ||80||
 
|| श्री स्वामी समर्थार्पणमस्तु ||
|| इति श्री अक्कलकोट स्वामी समर्थ स्तोत्र संपूर्णम् ||

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